इनका जन्म समस्तीपुर जिले के हरपुर पुसा (मुस्कौल) में एक गरीब किसान परिवार में 1897 ई. में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा 1902 ई. में घर पर ही प्रारंभ हुई। 1906 ई. में इनका छपरा के स्कूल में नामांकन हुआ। माध्यमिक शिक्षा इन्होंने हाजीपुर उच्च विद्यालय से प्रथम श्रेणी में उतीर्ण हुए। उन्होंने चम्पारण जाकर नील उपजाने वाले किसानों की मदद की। महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के कारण इन्हें 1921 ई. में गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। जेल में ये चैदह महीने बंदी रहे। 1930 ई. के नमक सत्याग्रह के समय इन्हें अमरपुर में गिरफ्तार कर लिया गया, और अगले वर्ष ये जेल से छूट गये। अब इन्होंने मुजफ्फरपुर पर ध्यान देना प्रारंभ किया। मुजफ्फरपुर इस समय तक खादी के कार्यों का प्रमुख स्थल बन चुका था। उन्होंने अपना सारा समय खादी और समाज सुधार में लगाया। 1934 ई. के भूकम्प में इन्होंने पूरी तन्मयता से मधुबनी में पीड़ितों की सेवा की। इन्होंने सिमरी के चरखा केन्द्र को अपने गतिविधियों का केन्द्र बनाया। उन दिनों सिमरी (मधुबनी) बहुत ही पिछड़ा हुआ क्षेत्र था। इनके प्रयास से यह क्षेत्र जल्द ही विकसित होने लगा। 1935 ई. में रामदेव ठाकुर ने अपनी सारी शक्ति सिमरी में खादी विद्यालय खोलने के लिए लगाई जिससे कामगारों को रचनात्मक दिशा मिली। खादी बेचने की कला कामगारों को सिखाई। सबसे महत्वपूर्ण काम इन्होंने श्रमिकों को अनुशासित रहना सिखाया। 1942 ई. में भारत छोड़ो आन्दोलन ने लोगो को झकझोरा। रामदेव ठाकुर सिमरी खादी विद्यालय में थे। इस आन्दोलन में प्रायः सभी खादी कर्मियों ने सक्रिय रूप से हिस्सा लिया।