गणमण्डला के अन्तिम गौण शासक शंकरशाह की जीवनसंगिनी थी रानी फलकुंवर। रानी फूलकुंवर गढ़ा गोंडवाना के एक रियासतदार लोटन सिंह की इकलौती पुत्री थी जो घुडसवारी, तीर कमान, तलवार आदि चलाने में तो निपुण थी ही साथ ही राजनीति की भी जानकार थी । रानी फूलकुंवर ने अपने घोड़े का नाम चेैतन्य रखा था जो सफेद रंग का था, और रानी के शंकरशाह के विवाह के बाद भी उनके साथ आ गया। राजा शंकरशाह और रानी फूलकुंवर ने अपनी कुलदेवी ‘ मालादेवी ‘ के भव्य मन्दिर का निर्माण करवाया। रानी ने रघुनाथशाह नामक पुत्र को जन्म दिया। सन् 1857 की कान्ति के दौरान, जब शंकरशाह और रघुनाथशाह अंग्रेज के विरुद्ध सैन्य संगठन कर रहे थे तब अंग्रेजों के भेदियों ने शंकरशाह की इस योजना का भेद अंग्रेजों को बता दिया और शंकरशाह एवं उनके पुत्र रघुनाथशाह को उनके निवास स्थल से ही गिरफ्तार कर उनपर देश-द्रोह का मुकदमा चलाकर दोनोें पिता-पुत्र को तोप से बांधकर उड़ा दिया दूसरी तरफ रानी फूलकुंवर शंकरशाह के कहने पर अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तारी के समय एक बूढ़ी औरत का वेश बनाकर बच निकली थी। उसके बाद उन्होंने कैसे स्वयं का सम्भाला होगा ईश्वर ही जानता है, परन्तु शंकरशाह एवं पुत्र रघुनाथ शाह की इतनी निर्दयी मृत्यू के बाद रानी ने नये सिरे से गोडवाने के वीरों एवं वीरांगनाओं की सेना संगठित की और सबसे पहले एक-एक कर अंग्रेज चाटुकारों, देशद्रोहियों उनके जासूसों को मारा । जगह - जगह अंग्रेज चैकियों पर गुरिल्ला पद्धति से हमला करने लगी और संग्राम की आग को अपने जीते भी नहीं बुझने दिया । अन्त में अंग्रेजों ने सागर और इलाहाबाद से और फौज बुला ली अब रानी की सेना, इस सेना के सामने काफी कम थी रानी ने अपने अंगरक्षक को कहा कि यदि वह मातृ भूमि की रक्षा करते हुये वीरगति को प्राप्त हो भी जाये तब भी उनका शरीर दुश्मन के हाथ न लगे, तुरन्त अग्नि दे देना। ऐसा ही हुआ, स्वयं को दुश्मन से घिरा देख रानी ने स्वयं की कटार से अपनी लीला समाप्त कर ली और अंगरक्षक ने उनके शरीर को अग्नि दे दी। जिसके बाद रानी की सेना तितर-बितर हो गई ।