भारत सरकारGOVERNMENT OF INDIA
संस्कृति मंत्रालयMINISTRY OF CULTURE
Munger (Monghyr), Bihar
March 17, 2023 to March 17, 2024
कार्यानन्द शर्मा का जन्म 1901 ई. में मुंगेर जिला के सूर्यगढ़ा थाना स्थित सहूर गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम गजाधर शर्मा था। इनकी शिक्षा 1906 ई. में शुरू हुई। वे मैट्रिक 1920 ई. में पास किया। कॉलेज में अध्ययन करने के दौरान उन्होंने कॉलेज का बहिष्कार कर दिया। बिहार में असहयोग आंदोलन 1920 में शुरू हुआ तो उन्हांने भी इस आंदोलन में सक्रिय भाग लिया। स्वामी सहजानंद सरस्वती के नेतृत्व में उन्होंने किसानों के लिए अनेक लड़ाईयाँ लड़ी जिसमें मजदूरों तथा किसानों की जीत हुई। वह आंदोलन के दौरान नौ बार जेल की यातनाएँ सही। उन्होंने सहजानंद सरस्वती तथा अन्य राजनैतिक नेताओं के सम्पर्क में रहकर आंदोलनों में सक्रिय योगदान देते थे। अखिल भारतीय किसान सभा के सर्वोपरी नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती के चार सिपहसलार किसान फ्रंट पर थे। एक गुजरात में इंदुलाल याज्ञनिक, मध्य बिहार में यदुनंदन शर्मा, छपरा में राहुल सांकृत्यायन तथा बड़हिया मुंगेर क्षेत्र में कार्यानंद शर्मा थे। किसान आंदोलनों में चानन, कटोरिया, बड़हियाटाल तथा आठमहला आंदोलन ऐतिहासिक रहा जिसमें बड़ी संख्या में किसानों ने भाग लिया था। 1930 ई. के नमक आंदोलन में इनको गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. कारण कि इस आंदोलन में उन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया था। उनको पुलिस आसानी से गिरफ्तार नहीं कर पाई कारण कि उनके प्रति लोगों में स्नेह था। इसकी वजह से लोगों ने पुलिस को गिरफ्तार नहीं करने दिया। लाचार होकर मिलिटरी से भरी एक स्पेशल ट्रेन बुलाई गई तब जाकर कार्यानंद को पुलिस पकड़ सकी। 1932 ई. में कार्यानन्द ने अपने इलाके में किसानों का बहुत बड़ा संगठन कायम किया। उन्होंने संगठन के द्वारा लोगों में जागृति लाने के लिए अधिक प्रयास किया। 1938 ई. में वह प्रांतीय किसान के सभापति चुने गये। 1942 ई. में वे किसान सभा के सचिव तथा 1945 ई. में अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष चुने गये। इसी बीच उनका झुकाव साम्यवाद की ओर हुआ। उनकी गणना कुछ ही समय में साम्यवादी नेता के रूप में होने लगी। कार्यानन्द शर्मा हजारीबाग जेल में सितम्बर 1941 से फरवरी 1942 तक रहे। जेल में ही अन्याय के विरूद्ध 49 दिनों तक अनशन किया। अगस्त क्रांति में उन्होंने योगेन्द्र शर्मा, चन्द्रशेखर सिंह, इन्द्रदीप सिंह आदि लोगों के साथ मिलकर भाग लिया था। इन साथियों की सहायता से ही उन्होंने किसानों को संगठित एवं अंग्रेजों के विरूद्ध भड़काने का काम किया था। 1965 ई. में इनकी मृत्यु हो गई। इनकी स्मृति में कार्यानन्द स्मारक महाविद्यालय लक्खीसराय में स्थापित है।