बिसवादास (बिलवा दास) का जन्म राजिम के निकट कौंदकेरा ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री परसादी था। इस गांव के निकट फिंगेश्वर जमींदारी थी। यहां के जंगल ग्रामवासियों के जीविकोपार्जन का प्रमुख जरिया था, किंतु उस पर ब्रिटिश शासन और जमींदार का अधिकार हो गया था। इस क्षेत्र पर राजिम तथा धमतरी में होने वाले आंदोलनों के साथ ही पंडित सुंदरलाल शर्मा का प्रभाव था। सन् 1930 में जैसे ही जंगल सत्याग्रह का कार्यक्रम स्वीकृत हुआ, इन्हीं क्षेत्रों में एक कौंदकेरा के निकट राजिम नयापारा में आंदोलन प्रारंभ हो गया।
बिसवा दास जी अपने मित्रों के साथ आंदोलन में सक्रिय हो गए। उन्होंने गोपीदास सतनामी, केशोदास, मिलऊ दास के साथ नयापारा के जंगलों में प्रवेश कर ब्रिटिश शासन का वन कानून को भंग किया। इस के जुर्म में अन्य सत्याग्िरहयों के साथ बंदी बनाकर रायपुर केंद्रीय जेल में 24 सितंबर, 1930 को भेज दिये गये। उन्हें 2 माह 27 दिवस का कारावास हुआ था। कारावास से मुक्त होने के पश्चात् भी वे राष्ट्रीय चेतना का प्रसार करते रहे।