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Unsung Heroes Detail

Paying tribute to India’s freedom fighters

दिनकर राव हिशीकर

Dhamtari, Chhattisgarh

January 30, 2023 to January 30, 2024

दिनकर राव हिशीकर धमतरी में राष्ट्रीय आंदोलन के नेतृत्व करने वाले प्रारंभिक पंक्ति के नेता थे, जो सन् 1900 से पूर्व से ही जनजागरण की गतिविधियों में संलग्न थे। दिनकर राव जी का परिवार धमतरी में निवास करने वाले मालगुजारों में से एक था। उनके पास धमतरी के लीलर, अमेठी आदि ग्रामों की मालगुजारी थी। अतः उचित शिक्षा - दीक्षा हुई थी तथा नागपुर जाते रहने के कारण राजनीतिक चेतना से ओतप्रोत थे। उनके परिवार के अन्य सदस्य भी राजनीतिक जागृति के कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से भाग लेते थे।

सन् 1905 में बंगाल विभाजन के पश्चात् स्वदेशी आंदोलन में दिनकर राव जी ने नारायण राव मेघावाले (फड़नविस) के साथ स्वदेशी सामग्रियों की बिक्री धमतरी तथा अन्य स्थानों में किया था। सन् 1918 में धमतरी राजनैतिक परिषद् का गठन हुआ जिसमें हिशीकर जी की सक्रिय भूमिका थी। सन् 1921 में धमतरी कांग्रेस कमेटी का गठन भी किया गया था। इसमें उन्हें कार्यकारिणी सदस्य बनाया गया था।

धमतरी में असहयोग आंदोलन के अतंर्गत मद्यनिषेध आंदोलन विशेष रूप से सफल कार्यक्रम था। इसमें हिशीकर जी मेघावाले के सहयोगी के रूप में सम्मिलित थे। सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय धमतरी के निकट वन ग्रामों में अगस्त-सितंबर सन् 1930 जंगल सत्याग्रह होते रहे थे। 22 अगस्त, 1930 को धमतरी के निकट रुद्री नवागांव जंगल में सैकड़ों ग्राम वासियों के साथ जंगल सत्याग्रह प्रारंभ हुआ था। 9 सितंबर को पुनः रूद्री नवागांव में हजारों लोग पहुंच गए। दिनकर, नत्थुजी जगताप, दयाबाई, महेश सिंह आदि नेताओं के हाथों में आंदोलन का नेतृत्व था। बहुत बड़ी संख्या में पुलिस बल एकत्र था जो आंदोलन को किसी भी तरह कुचल देना चाहते थे। आंदोलनकारियों को कई समूहों में बांट दिया गया था। हिशीकर को तीसरे जत्थे का नेतृत्व करना था। पुलिस ने उस दिन के नेतृत्व करने वाले सभी नेताओं के साथ घर पर ही दिनकर रावजी को गिरफ्तार कर लिया। अन्य बहुत से नेताओं पर बहुत बड़ी राशि का जुर्माना लगाया गया था।

दिनकर रावजी को 20 लोगों के साथ आईपीसी की धारा 149 के तहत गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था। गिरफ्तारी के समय से लेकर जेल में भी उनके साथ बहुत अधिक मारपीट की गई थी। अतः उनका स्वास्थ्य खराब हो गया था। गांधी-इरविन समझौते के कारण वे सन् 1932 में रिहा कर दिए गए थे। किंतु पुलिस की पिटाई ने उनका स्वास्थ्य खराब कर दिया था और कुछ ही दिनों में उनका देहावसान, सन् 1932 के लगभग हो गया।

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