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Paying tribute to India’s freedom fighters

लक्ष्मीनारायण झरवाल

Jaipur, Rajasthan

July 21, 2022

श्री लक्ष्मीनारायण झरवाल का जन्म 2 नवम्बर 1914 को जयपुर में हुआ। इन्होंने 24 वर्ष की आयु से राष्ट्र्रय आन्दोलन में भाग लेना आरम्भ कर दिया था। 20 अक्टूबर 1938 में किशनपोल बाजार स्थित, आर्य समाज मंदिर मे प्रजामण्डल अधिवेशन शुरू हुआ जिसमें श्री झरवाल ने भी श्रीचंद्र अग्रवाल के साथ भाग लिया जहाँ इनकी जयपुर राज्य प्रजामण्डल के संस्थापक सदस्य श्री हीरालाल शास्त्री, वैद्य श्री विजय शंकर शास्त्री जैस स्वतंत्रता सेनानी आदि नेताओं से भेंट हुई। सन 1941-42 में श्री लक्ष्मीनारायण झरवाल ने प्रजामण्डल आंदोलनों में खासा उत्साह लेते हुए भाग लिया जिसके कारण इन्हें बन्दी बना लिया गया और छोटी चौपड़ कोतवाली मे हाथों मे हथकड़ी डालकर कमरे की छत के कुंदो मे जंजीरों से ऊँचा लटका दिया और कठोर शारीरिक यातनाओं के साथ मानसिक यातनाऐं भी दी गई। साथ ही हाथ व पाँव की अंगुलियों के काली स्याही से प्रिंट लिए गये और इसके अलावा उन्हें एक रुक्का लिखकर दिया गया जिसमें आदेश यह था कि ‘आपको माणक चौक थाना, बड़ी चौपड़ मे प्रतिदिन उपस्थित होकर हाजरी देनी होगी।

सन् 1938 में श्री जमनालाल बजाज की अध्यक्षता में प्रजामण्डल का द्वितीय अधिवेशन आगरा रोड स्थित नथमल जी का कटला, जयपुर (वर्तमान में यह अग्रवाल कॉलेज के नाम से जाना जाता है) में संपन्न हुआ इसमें चरखा संघ की ओर से एक खादी प्रदर्शनी भी लगी यहीं पर आपकी मुलाकात क्रान्तिकारी नेता श्री ओमदत्त शास्त्री व बलवंत राय देशपांडे मंत्री चरखा संघ से हुई 12 फ़रवरी 1939 के दौरान जयपुर राज्य में भयंकर अकाल पड़ा था श्री जमनालाल बजाज अकाल की स्थिति का आकलन करने के लिय वर्धा से जयपुर के लिए रवाना हुए परन्तु राज्य सरकार ने इनके जयपुर प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया लेकिन राज्य सरकार की प्रतिबंध की आज्ञा तोड़कर श्री बजाज ने जयपुर में प्रवेश किया जिस पर सरकार ने उन्हें बन्दी बना कर सिसोदिया बाग में कैद कर दिया इसी दौरान प्रजामण्डल के सत्याग्रह आंदोलन ने ओर जोर पकड़ लिया जिस पर प्रजामण्डल के प्रमुख नेता श्री हीरालाल शास्त्री, बाबा हरिश चन्द्र शास्त्री रामकरण जोशी (दौसा) लक्ष्मी नारायण झरवाल एवं सुलतान सिंह झरवाल जयपुर आदि नेताओं को बन्दी बना लिया

उदयपुरवाटी, गुढ़ापोंख, चला, चौकड़ी आदि स्थानों पर मीणा जाति पर किये जा रहे अत्याचार व अन्याय के विरुद्ध गुढ़ा में प्रस्तावित प्रजामण्डल के तपस्वी नेता श्री बद्री नारायण खोरा की अध्यक्षता में किसान सम्मेलन के प्रचार-प्रसार के लिए जब श्री झरवाल पर्चे बांट रहे थे उसी समय आपको नीम का थाना रेलवे स्टेशन के बाहर भारत सुरक्षा कानून की धारा 129 के अंतर्गत हेड कांस्टेबल आत्माराम द्वारा बन्दी बना लिया गया और छावनी पुलिस मुख्यालय ले जाकर आपको काठ में दे दिया गया और अनेक कठोर यातनाऐं देना शुरू कर दिया जैसे खुले आसमान में पेड़ के नीचे काठ पड़ा था उसी में श्री झरवाल के दोनों पैरों को फँसा दिया गया जोरो से आंधी व हवा की वजह से खुले पड़े चौड़े से मैदान में बालू मिट्टी उड़कर आँखों व मुँह में आने लगी इन परिस्थितियों के बावजूद भी आपने स्पष्ट कह दिया की ”यदि तुम मेरे शरीर के टुकड़े-टुकड़े भी कर डालो,तो भी महात्मा गाँधी का सत्य व अहिंसा का मार्ग नहीं छोडूंगा” लम्बे समय तक वहाँ काठ में रखकर आपको 3 अप्रैल, 1945 को केंद्रीय कारागार, जयपुर में भेज दिया गया  वहाँ पर भी दो माह तक अनेक यातनाऐं दी गई अंततः 29 मई 1945 को जयपुर जेल से रिहा कर दिया गया श्री लक्ष्मीनारायण झरवाल ने मीणा जाति और स्वतन्त्रता का इतिहास नामक पुस्तक भी लिखी। | इनकी मृत्यु 27 अप्रेल 2017 को जयपुर में हुई।

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