बस्तर रियासत के अंतर्गत परलकोट जमींदारी के जमींदार गेंद सिंह ने मराठों और ब्रिटिश अधिकारियों के शोषण के विरुद्ध भुजरिया अबूझमाड़िया आदिवासियों को लेकर बस्तर की स्वतंत्रता का शंखनाद 1824-1825 में किया था।
यह विद्रोह (क्रांति) नए करों के विरोध में था। शासकीय शोषणकारी नीतियां उन्हें अपने अस्तित्व के लिए खतरनाक नजर आती थीं । गेंद सिंह के आह्वान पर 24 दिसंबर, 1824 में परलकोट में अबूझमाड़ियां एकत्र होने लगे और 4 जनवरी, 1824 से 1825 तक अबूझमाड़ से चांदा तक फैल गए थे।
क्रांतिकारी धंवड़ा वृक्ष की टहनियों को संकेत के रूप में एक स्थान से दूसरे स्थान भेजते थे पूरा मांड अंचल क्रांति की गिरफ्त में था। विद्रोह का संचालन अलग-अलग टुकड़ियों में मांझी लोग करते थे और रात में गुटों में एकत्र होकर अगले दिन की योजना बनाते थे। उनका उद्देश्य बस्तर को गुलामी से मुक्त कराना था।
छत्तीसगढ़ के ब्रिटिश प्रशासक एगेन्यू के निर्देश या चांदा के पुलिस अधीक्षक कैप्टन पिव ने मराठा और अंग्रेज सेना की सहायता से 12 जनवरी, 1825 को गेंद सिंह और उसके साथियों को गिरफ्तार कर लिया। क्रांतिकारियों का कठोर दमन किया गया और 20 जनवरी, 1825 को गेंद सिंह को उनके महल के सामने ही फांसी दे दी गई। अंग्रेजों के विरूद्व स्वतंत्रता का शंखनाद करने वाले शहीद गेंद सिंह बस्तर ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के पहले शहीद है।