लोहरू राम हल्बा धमतरी के नगरी ग्राम के निवासी थे। उनके पिता का नाम श्री रतिराम हल्बा था। सन् 1920 में कांग्रेस के नागपुर के अधिवेशन के पश्चात् धमतरी में राजनीतिक जागरण का प्रसार गांवों में हो गया था । नगरी के श्री श्यामलाल सोम, धमतरी तहसील के अग्रणी नेता के रूप में अपना स्थान बना चुके थे । उनकी प्रेरणा से नगरी के पास झण्डा-भर्री नामक जंगल में जनवरी 1922 से जंगल कानून तोड़ने, मजदूरी बढ़ाने एवं बेगारी के विरुद्ध आंदोलन हुआ। इसमें नगरी और उसके आसपास के ग्राम के ग्रामवासियों के साथ धमतरी के अनेक नेता शामिल हुए थे। इस आंदोलन को कुचलने के लिए धमतरी तहसील पुलिस बल सर्किल इंस्पेक्टर जनार्दन प्रसाद एवं रायपुर से आये अंग्रेज पुलिस कप्तान बेली के नेतृत्व में नगरी सिहावा पहुंच गए थे। इसके सत्याग्रही के रूप में 30 जनवरी, 1922 को लोहरू राम गिरफ्तार हुए थे। उन पर 25 रूपये के जुर्माने की सजा दी गई थी।
असहयोग आंदोलन की समाप्ति के कुछ समय पश्चात् ही जून 1923 में मध्यप्रांत कांग्रेस कमेटी ने झंडा सत्याग्रह प्रारंभ किया। धमतरी तहसील से लगभग 100 सत्याग्रही इसमें भाग लेने नागपुर पहुंच गए थे। गिरफ्तार सत्याग्रहियों में लोहरू राम जी भी थे। उनको 3 माह कारावास की सजा हुई थी। वे 1942 तक राष्ट्रीय कार्यक्रमों में सक्रिय स्वयंसेवक के रूप में जुड़े रहे और खादी प्रचार के लिए अपने को समर्पित कर दिया था।