तुलसीदास रायपुर जिले के फिंगेश्वर जमींदारी के कौंदकेरा ग्राम के निवासी थे। उनके पिता का नाम श्री आधार दास था। राजिम में होने वाले राष्ट्रीय आंदोलन एवं सामाजिक-संास्कृतिक घटनाओं के प्रभाव स्वरूप उसके फिंगेश्वर जमींदारी का राजिम के निकट होने से अत्यधिक पर प्रभाव पड़ा था। सन् 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय मध्यप्रांत में जंगल सत्याग्रह किया गया। ब्रिटिश शासन के द्वारा बनाया गया वन अधिनियम के कारण वनों से घास, वनोपज एवं निस्तारी के लिए लकड़ी लेना भी गैरकानूनी हो गया था।
तुलसीदास जी अपने चाचा प्राणदास जी के साथ फिंगेश्वर के जंगल सत्याग्रह में भाग लिया। 6 सितंबर, 1930 को गिरफ्तार हो गये तथा 3 माह के कारावास की सजा हुई साथ वे रायपुर केंद्रीय जेल में रहे।
वे जेल से मुक्त होने के पश्चात् राष्ट्रीय आंदोलन के एक सक्रिय स्वयं सेवक बनकर स्वदेशी का प्रचार किया था। भारत छोड़ो आंदोलन के समय भूमिगत रूप से ब्रिटिश शासन के विरोध करते हुए ग्रामों में राष्ट्रभक्ति का प्रचार किया था।