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Unsung Heroes Detail

Paying tribute to India’s freedom fighters

सुबरन कुंवर देवी (सुवर्ण कुंवर देवी)

Bastar, Chhattisgarh

March 15, 2023 to March 15, 2024

बस्तर के शासक भैरमदेव सन् 1853 में 13 वर्ष की आयु में गद्दी में बैठे थे। उनकी दो पत्नियां थी युवराज कुंवर देवी तथा छोटी बहन सुवर्णकुंवर देवी था (सुबरन कुंवर देवी) जो रीवा (बघेलखंड) की राजकुमारियां थी। इन दोनों के कोई पुत्र नहीं होने पर राजा ने एक तीसरा विवाह किया जिससे रूद्र प्रताप देव हुए जो अल्पायु में पिता की मृत्यु के बाद राजा बन गए थे, किंतु ब्रिटिश शासन उन्हें अधिकार नहीं दिया। ‘कोर्ट ऑफ वार्डस’ का गठन कर अंग्रेज प्रशासक के पास पूरा अधिकार आ गया था। रूद्रप्रताप देव के वयस्क होने पर सन् 1908 में उन्हें राजा होने का सनद् दे दिया तथा इसी वर्ष वन कानून भी पूरे बस्तर में लागू कर दिया गया।

बस्तर में अंग्रेजो के द्वारा नयी व्यवस्था लागू कि गयी, और आदिवासियों का शोषण भी़ बढता गया। इस औपनिवेशिक शिकंजे से बस्तर की प्रजा असंतुष्ट और क्रोधित थी। इसी समय राजमाता सुवर्णकुंवर देवी ने सन् 1909 में हजारों आदिवासियों के मध्य लाल कालेन्द्र सिंह की उपस्थिति में बस्तर में मुरिया राज की स्थापना की प्रतिज्ञा की और सामंती व्यवस्था तथा औपनिवेशिक प्रशासन दोनों को ही समाप्त करने के लिए प्रजा का आह्वान किया।

1 फरवरी, 1910 को पूरे बस्तर में एक साथ भूचाल आ गया इसीलिए इस विद्रोह को ‘‘भूमकाल’’ कहा गया। 7 फरवरी को गीदम नामक कस्बे पर विद्रोहियों का पूर्ण अधिकार हो गया था। 21 फरवरी को राजमाता, और लाल कालेन्द्र सिंह को अंग्रेजों ने तोड़ने का असफल प्रयत्न किया। अतंतः 25 फरवरी, 1910 को लाल कालेन्द्र सिंह  को गिरफ्तार कर बस्तर से निर्वासित कर दिया गया तथा   सुवर्ण कुवंर देवी को रायपुर जेल भेज दिया गया जहां नवंबर 1910 में उनकी मृत्यु हो गयी।

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