दक्षिण बस्तर मेें औपनिवेशिक सŸाा के विरूद्व जनजातियों का विरोध जारी रहा। जनजाति संघर्ष कोई विद्रोह से हिंसक रूप धारण का चुका था। नागुल दोर्ला जो फोतेकाल के जमींदार थे उनके साथ भोपालपटनम के जमींदार रामभोई, भीजी का जमींदार जूग्गाराजू तथा जुम्माराजू ने मिलकर ठेकेदारों द्वारा आरा मशीन लगायी जाने और जंगल के कटाई का विरोध किया। साल और सागौन के वृक्ष से उनका केवल आर्थिक ही नहीं धार्मिक जुड़ाव भी था। इसलिए उन्होंने लकड़ी की टालें जला दी, आरा चलाने वालों के सिरों को काट डालें, धन लूट लिया तथा ब्रिटिश कर्मचारियोें को भागने के लिए मजबूर कर दिया। दुर्गम वन क्षेत्र में अंग्रेज अपने सिपाही भेजने से बचते रहे और नागुल दोर्ला के नेतृत्व विद्रोह सफल रहा।