व्यकंटराव की गिरफ्तारी के पष्चात् दक्षिण बस्तर के छोटे जमींदारों के उग्र विद्रोह हुए। ये विद्रोह दण्डामी माड़िया एवं दोर्ला जनजातियों के लोग जिन्हें ‘‘कोई’’ समुदाय कहा जाता था, द्वारा किये गये जो अंग्रेजों द्वारा भेजे गए ठेकेदारों और उनके कर्मचारियों के विरूद्ध थे। इनका केंद्र फोतकेल की जमींदारी और उसका जमींदार नागुल दोरा तथा उसके भीजी जमींदारी का जमींदार जुग्गाराजू था, जो गुरिल्ला युद्ध में माहिर था।
हैदराबाद रियासत में रेल लाइन बनाने के लिए बस्तर के साल और सागौन वृक्षों की कटाई का ब्रिटिश सरकार द्वारा ठेका दिया जाना इस विद्रोह का कारण था। साल वृक्ष को देवता मानने वाले ‘कोई’ जनजाति समुदाय ने घोषित किया कि एक साल का वृक्ष काटने पर बाहरी लोगों का एक सिर काटा जाएगा।
जुग्गाराजू ने अपने भाई जुम्माराजू के साथ अनेक कर्मचारियों को मौत के घाट उतारा तथा आरा-मिलों को आग के हवाले कर दिया। अंग्रेज अधिकारी क्रिक्टन तथा ग्लासफर्ड ने अपने सैनिकों को भेजकर ठेकेदारों को संरक्षण देने का प्रयत्न किया किंतु जग्ुगाराजू, जुम्मा राजू एवं पाम भोई ने मिलकर ऐसा गुरिल्ला युद्ध किया की सैनिकों को भी भागना पड़ा। इस क्रांति से घबराकर अंग्रेजों ने उस क्षेत्र से अपने ठेकेदारों को हटा लिया तथा पेड़ों की कटाई बंद कर दी।