बस्तर रियासत के अंतर्गत दक्षिण बस्तर की जमींदारी मोमनपल्ली का देशभक्त जमींदार बाबूराव था। वह युवा और उग्र था। वह धुर्वाराव को अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करने में सहायता कर रहा था, उसके जमींदारी के अच्छे लड़ाके धुर्वाराव के साथ अंग्रेजों के साथ संघर्ष कर रहे थे। धुर्वाराव को फांसी देने के पश्चात् वह खुलकर यादोराव के साथ अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई में सामने आ गया। उसके साथ अरपल्ली एवं घोंट तालुके के जमींदार व्यंकटराव भी आ गए थे। यादोराव, बाबूराव एवं व्यंकटराव की सम्मिलित शक्ति से अंग्रेज भयभीत हो गए थे।
कैप्टन क्रिक्टन के नेतृत्व में एक सेना आधुनिक हथियारों से लैस होकर बस्तर में थी इसके बाद भी, यह तीनों जमींदार अपनी दो हजार सैनिकों के साथ उन पर हमला कर उन्हें बहुत क्षति पहुंचाई थी। 29 अप्रैल, 1858 को तीन टेलीग्राफ कर्मचारी गर्टलैण्ड, हाल तथा पीटर पर हमला कर दिया। इसमें दो अंग्रेज अधिकारी मारे गए। पीटर बचकर निकल गए। इस घटना के बाद कैप्टन क्रिक्टन सतर्क हो गया तथा उसने अहिरी की जमींदारीन लक्ष्मीबाई को लालच देकर तथा सेना का भय दिखाकर अपनी ओर कर लिया।
अंग्रेजो के कहने पर लक्ष्मीबाई ने सहायता देने के धोखे से बाबूराव को गुप्त रूप से अपने जमींदारी में आने का बुलावा भेजा। इस खबर को पाकर बाबूराव प्रसन्न हुआ कि लक्ष्मीबाई की सहायता भी उन्हें प्राप्त हो जाने से उनकी ताकत बढ़ जाएगी। वे आमंत्रण के षड्यंत्र को समझ नहीं पाया था। बाबूराव को अहिरी पहुंचने के पहले ही घात लगाकर बैठे किंग्सटन के सेना ने पकड़ लिया और उसे चांदा ले आए तथा उस पर ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह करने तथा अंग्रेज अधिकारी को मारने का आरोप लगाकर 21 अक्टूबर, 1858 को चांदा में ही फांसी दे दी गयी। इस तरह षड़यंत्र से अंग्रेजों ने बस्तर में अपनी सत्ता सुरक्षित कर ली।