दीनानाथ नायक का जन्म ग्राम गनियारी पाटन दुर्ग में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री केशव राम नायक था। उनका परिवारिक कार्य कृषि था किंतु उन्होंने शिक्षकीय कार्य को चुना था। वे अपने स्कूल के विद्यार्थियों को देश के वीरों के किस्से सुना कर उनके अंदर राष्ट्रप्रेम जागृत करते थे । भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ होते ही वह स्वतंत्रता संग्राम में प्रत्यक्ष रूप से आ गए तथा नौकरी की परवाह न करते हुए वे आंदोलन में शामिल हो गए। ब्रिटिश शासन के विरोध में सभा में भाषण देने एवं ब्रिटिश शासन के विरुद्ध नारा लगाने के कारण उन्हें डी.आई.आर. की धारा 38(5) के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया तथा दुर्ग के न्यायाधीश श्री शर्मा के आदेशानुसार उन्हें 9 माह की सजा सुनाई गई। वे 13 अक्टूबर, 1942 से 16 जून, 1943 तक रायपुर केन्द्रीय जेल में रहे। उनका देहावसान सन् 1966 को हो गया।