दयाराम ठेठवार का जन्म 14 अप्रैल, 1930 में रायगढ़ में हुआ था। सन् 1942 के आंदोलन से प्रभावित होकर रायगढ़ रियासत के जूट मिल के कामगारों ने सन् 1943 में हड़ताल कर दिया था। उन्होंने रंगीन कागज का तिरंगा बनाकर स्कूल के बच्चों में बांटा तथा जूट मिल के कामगारांे के आंदोलन में सम्मिलित हो गए। रियासत की पुलिस के कड़ाई के बाद भी वानर सेना उनके नेतृत्व में कामगारों कि जुलूस में शामिल हो गए थे। इस कारण रियासत की पुलिस ने उनकी तलाश शुरू कर दी थी। अतः वे गुप्तरूप से सिद्धेश्वर गुरु के मकान में छिपकर रहने लगे थे। यहां पर उनकी मुलाकात वी.वी. गिरी से हुई थी, और वे कट्टर देशभक्त बन गए थे।
सन् 1946 से वे रायगढ़ के साथ सक्ति रियासत के विलीनीकरण आंदोलन से जुड़ गए थे, इस समय दोनों रियासतों के आंदोलन को नागपुर के मगनलाल बागड़ी तथा श्याम नारायण कश्मीरी जैसे समाजवादी नेताओं का नेतृत्व एवं प्रेरणा प्राप्त थी। यह आंदोलन रियासतों में प्रजातंत्र की स्थापना के लिए था। 20 नवंबर, 1947 में खरसिया में एक आम सभा हुई जिसमें मदनलाल ठेठवार भी उपस्थित थे। इसके कारण पुलिस उन्हें रोज थाने में हाजिरी देने बुलाने लगी थी, फिर भी वे गुप्त रूप से अपने साथी अमर दास एवं तोड़ाराम जोगी के साथ मिलकर रियासत के दीवान एवं पुलिस कप्तान के विरूद्व जगह-जगह पोस्टर चिपकाते थे। इन घटनाओं का अंत रियासत के राजा द्वारा विलीनीकरण मसौदे पर हस्ताक्षर करने के पश्चात् हुआ। उनका देहावसान 28 जुलाई, 2019 को हुआ।