भारत सरकारGOVERNMENT OF INDIA
संस्कृति मंत्रालयMINISTRY OF CULTURE
Raipur, Chhattisgarh
January 30, 2023 to January 30, 2024
रामलाल वर्मा का जन्म दुर्ग जिले के पाटन जमींदारी के देवादा ग्राम में वर्ष 1916 में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री चुनगू राम वर्मा एवं माता का श्रीमती बिंदिया बाई था। उन्होंने प्राथमिक तक की शिक्षा प्राप्त की और कम आयु से ही कांग्रेस की गतिविधियों में संलग्न हो गए थे। सन् 1935 से ही अपने ग्राम के कांग्रेसी स्वयंसेवक के रूप में पहचाने जाते थे । इसी कारण दुर्ग जिले के स्वयंसेवक जत्थे के साथ उन्होंने कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में भाग लिया था तथा शिविर संचालन कमेटी में रहकर अपना योगदान दिया था। यहां वे सुभाषचंद्र बोस की विचारधारा से प्रभावित होकर उग्र राष्ट्रवाद के समर्थक हो गए थे। उनके विचारों ने परिवार के अन्य सदस्यों को भी प्रभावित किया जिसके कारण परिवार के अन्य युवा सदस्यों ने भी आंदोलन का मार्ग अपनाया था।
सन् 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह के समय पाटन के कई ग्रामों में जाकर जनजागरण किया था। 9 अगस्त, 1942 को ही दुर्ग जिले में भी आंदोलन प्रारंभ हो गया। अतः पाटन क्षेत्र के गांव-गांव में दूसरे दिन से ही जुलूस निकालने लगे एवं सभाएं होने लगी। रामलाल जी ने लगभग 10 गांव की सभाओं को संबोधित कर अंग्रेज सत्ता के विरुद्ध आंदोलन करने के लिए लोगों को प्रेरित किया। 30 सितंबर, 1942 को पाटन के रावणभाठा में एक विशाल सभा हुई। वहां पुलिस दल पहले से पहुंचे हुए थे। राष्ट्रभक्तों ने पुलिस को अपने नीले यूनिफॉर्म के स्थान पर उनके द्वारा लगाए गए खादी के कपड़े पहनने के लिए आग्रह किया गया। इसके पश्चात् वातावरण ऐसा गर्म हुआ कि आंदोलनकारियों ने थाने में आगजनी का प्रयत्न किया था। अतः वहीं पर 10 सत्याग्िरहयों को गिरफ्तार कर लिया गया। 10 सत्याग्िरहयों को गांवों में छापा मारकर गिरफ्तार किया गया। 13 सितंबर, 1942 को रामलाल जी को उनके ग्राम देवादा में उनके अन्य पांच साथियों के साथ एक टूटे-फूटे मकान से गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें 6 माह के कारावास की सजा हुई थी। 15 सितंबर, 1942 से 7 अप्रैल, 1943 तक वे रायपुर केन्द्रीय जेल में रहे। उनका देहावसान सन् 2006 में हुआ।