आजादी का अमृत महोत्सव श्रृंखला के तहत राजकीय महाविद्यालय बिरोहड़ के स्नातकोत्तर इतिहास विभाग और हरियाणा इतिहास कांग्रेस के संयुक्त तत्वावधान में महान समाज सुधारिका एवं आधुनिक भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले के 126वें महा परिनिर्वाण दिवस के अवसर पर एक ऑनलाइन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के संयोजक और मुख्य वक्ता डॉ. अमरदीप इतिहास विभागाध्यक्ष ने कहा कि सावित्रीबाई फुले ने आधुनिक समाज में स्त्री अधिकारों और स्त्री शिक्षा की दिशा में अभूतपूर्व योगदान दिया। उन्होंने स्त्री शिक्षा की अखंड ज्योति जलाकर बदलाव की एक बड़ी लहर को जन्म दिया। सावित्रीबाई फुले का जन्म 1831 में महाराष्ट्र के सतारा के नया गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। 9 वर्ष की आयु में उनकी शादी ज्योतिबा फुले से हुई और 17 वर्ष की आयु में अध्यापन का कार्य प्रारम्भ करके पुरातन और अंधविश्वास से भरे समाज को सुदृढता की ओर ले जाने का प्रयास किया। सावित्रीबाई ने जोर दिया कि स्त्रियों को न देवी मानने और न ही पूजने की जरूरत है बल्कि उन्हें बराबरी का सम्मान एवं अधिकार देने की आवश्यकता है। महिला शिक्षा से दो परिवार शिक्षित होते है, जबकि पुरुष शिक्षा से केवल एक। इसलिए शुरुआत में उन्होंने सर्वप्रथम लड़कियों की शिक्षा के लिए पहला घर भी छोड़ना पड़ा। इस घटना से सावित्रीबाई का मनोबल टूटने की बजाय और अधिक मजबूत हुआ और उन्होंने विद्यालय 1848 में पुणे में खोला था। इस फातिमा बीवी 1848 से लेकर 1852 के विद्यालय की स्थापना के लिए सावित्रीबाई बीच लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले थे। और ज्योतिबा फुले को ने केवल रुढिवादी सावित्रीबाई फुले ने अपने विद्यालयों में को समाज का उत्पीड़न सना पद्म बल्कि अपना अतिआधुनिक गतिविधियों जैसे पेरेंट्स टीचर मीटिंग, छात्रवृत्तियों की शुरुआत इत्यादि से सुसज्जित करके शिक्षा जगत में नए एवं भविष्य गामी प्रयत्न किए जो आज की प्रोफेसर उपस्थित रहे।