देश को आजाद कराने में स्वतंत्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों का बड़ा योगदान रहा, जिन्होंने अपने प्राणों का बलिदान देकर देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाई। उन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों में से बलवंत सिंह भी एक हैं। बलवंत सिंह का जन्म 16 सितम्बर 1882 को पंजाब के जालंधर के गांव खुर्दपुर में हुआ। वक्ताओं ने उनकी जयंती पर उन्हें याद करते हुए कहा कि बलवंत सिंह ने 10 वर्ष तक अंग्रेजों की सेना में काम किया। वर्ष 1905 में सेना से त्यागपत्र देकर वह धार्मिक क्रियाकलापों में लग गए। कुछ समय बाद वह अमेरिका होते हुए कनाडा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि भारत की दासता के कारण और जातीय भेदभाव से भारत से गए लोगों के साथ बहुत बुरा बर्ताव किया जाता है। उन्होंने इसके विरोध में आवाज़ उठाई, किन्तु उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अब उनको विश्वास हो गया कि भारत से अंग्रेजों की सत्ता समाप्त होने पर ही इस भेदभाव का अंत संभव है। वह गदर पार्टी के संपर्क में आए। कामागाटा मारु जहाज से भारत के लोगों को कनाडा के तट पर उतारने का प्रयत्न करने वालों में शामिल हो गए। भारत आकर उन्होंने पंजाब में लोगों को विदेशी सरकार के विरुद्ध संगठित करने का प्रयत्न किया। वहां के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल डायर ने लिखा कि बलवंत सिंह पंजाब में राजद्रोह फैला रहे थे। वक्ताओं ने कहा कि बलवंत सिंह बैंकाक गए हुए थे कि उन पर कनाडा के सिखों के विरुद्ध काम करने वाले हॉपकिन्सन की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया गया था। वर्ष 1915 में उन्हें गिरफ्तार कर ब्रिटिश सरकार को सौंप दिया गया। लाहौर षड्यंत्र केस में भी उन पर मामला दर्ज कर लिया गया। वर्ष 1917 में उन्हें लाहौर जेल में फांसी दे दी गई। वक्ताओं ने कहा कि बलवंत सिंह जैसे महान क्रांतिकारी के जीवन से प्रेरणा लेकर युवाओं को देश व समाज हित के कार्य करने चाहिए।