आजादी का अमृत महोत्सव के तहत हिन्दी आंदोलन में भाग लेने वाले आंदोलनकारियों को हरियाणा सरकार द्वारा सम्मान स्वरूप पेंशन दी जा रही है। वहीं हिंदी आंदोलन के सोनीपत जिला से 13 में से जीवित एकमात्र सदस्य सरदार सिंह ने साझा किए संस्मरण हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा दिलाने के लिए लाठियां खाईं।
75 वर्ष पूर्व देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिलने के बाद भी कई आंदोलन चले थे । ये आंदोलन हिंदी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिलाने के लिए चलाए गए । हिंदी के उन्हीं सिपाहियों में एक हैं सोनीपत के गांव रोहट निवासी सरदार सिंह । जिन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर हिंदी की उसका द्य वास्तविक स्थान दिलाने के लिए संघर्ष किया । 89 वर्षीय सरदार सिंह को आज भले ही सुनाई देना थोड़ा कम हो गया हो , लेकिन मातृभाषा हिंदी के प्रति प्रेम आज भी जोश भर देता है ।
सरदार सिंह बताते हैं कि 1957 में हरियाणा व पंजाब एक था। तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरो गुरुमुखी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा देना चाहते थे । इसी के विरोध में आंदोलन शुरू किया था । मांग थी कि हिंदी भाषा को ही राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिया जाए । कई बार जेल से . आने के बाद हम सभी ने आंदोलन की तेज किया । जब तक मांगे परी नहीं हुई , तब तक संघर्ष जारी रखा । आंदोलन एक साल तक चला ।