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आजादी का अमृत महोत्सव के तहत सामुदायिक केन्द्र का शहीद जतिन दास के नाम पर नामकरण

Haryana

September 13, 2022

आजादी का अमृत महोत्सव के तहत हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष श्री ज्ञानचंद गुप्ता ने आज शहीद जतिन दास के शहीदी दिवस के अवसर पर उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें नमन किया। इस अवसर पर श्री गुप्ता ने सेक्टर-9 के सामुदायिक केन्द्र का शहीद जतिन दास के नाम पर नामकरण किया। उन्होंने घोषणा की कि जिले के गांवों में स्थित सामुदायिक केन्द्रों का नाम भी शहीदों के नाम पर रखा जाएगा। इस अवसर पर पंचकूला के मेयर कुलभूषण गोयल तथा नगर निगम के आयुक्त वीरेन्द्र लाठर भी उपस्थित थे। 
शहीद जतिन दास का जन्म 27 अक्तूबर 1904 को कलकत्ता के साधारण बंगाली परिवार में हुआ। 16 वर्ष की उम्र में जतिन दास ने महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में अपना योगदान दिया। शहीद जतिन दास ने विदेशी कपड़ों की दुकान पर धरना देते हुए पुलिस ने उन्हें गिरफ्तारी किया और जिसके लिए उन्हें 6 माह ही सजा हुई। इसके बाद वे श्चीन्द्रनाथ सान्याल के संपर्क में आए और क्रांतिकारी संस्था हिन्दुस्तान रिपबलिकन ऐसोसिएशन के सदस्य बन गए। 1925 में जतिन्द्रनाथ को दक्षिणेश्वर बम कांड और काकोरी कांड के सिलसिले में गिरफतार कर लिया किंतु सबूतों के अभाव में उन्हें नजरबंद कर दिया गया। जेल में उन्होंने दुव्र्यवहार के विरोध में जेल प्रशासन के खिलाफ 21 दिनों तक भूख हड़ताल की। बाद में उनके बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण अंग्रेज सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया। इसके उपरांत 1928 में उनकी मुलाकात सुभाषचन्द्र बोस और सरदार भगत सिंह से हुई। 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने जो बम केन्द्रीय असेंबली में गिराए थे वो श्री जतिन दास द्वारा ही बनाए गए थे। शहीद जतिन दास बम बनाने के माहिर थे। 
 14 जून 1929 को शहीद जतिन दास को गिरफतार किया गया। उन पर लाहौर षडयंत्र केस में मुकदमा चला और उन्हें जेल हो गई। जेल में अन्य क्रांतिकारियों के साथ दुव्र्यवहार और घटिया खाने के कारण उन्होंने सामूहिक भूख हड़ताल शुरू कर दी। यह भूख हड़ताल 63 दिनों तक चली। अंग्रेजी सरकार ने उनकी भूख हड़ताल तोड़ने के लिए उनकी नाक से नली डाल कर क्रांतिकारियों के पेट में बलपूर्वक दूध डालना शुरू कर दिया। नली द्वारा डाला गया एक सेर दूध शहीद जतिन दास के फेफड़ों में चला गया। इससे उनकी तबीयत बिगड़ गई। जेल के कर्मचारियों ने उन्हें धोखे से बाहर लेजाना चाहा लेकिन जतिन दास अपने साथियों से अलग नहीं हुए और अनशन के 63वें दिन 13 सितंबर 1929 को जतिन दास का देहांत हो गया। 25 वर्ष की आयु में  शहीद हुए जतिन दास का नाम इतिहास में अमर रहेगा। 
इस अवसर पर पूर्व प्रोफेसर एवं साहित्यकार एमएम जुनेजा, पार्षद सोनिया सूद, रितु गोयल, सुनीत सिंगला, सतबीर चैधरी, प्रमोद वत्स, शहीद भगत सिंह मंच से जगदीश भगत सिंह तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।

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