लोहड़ी पौष के अंतिम दिन, सूर्यास्त के बाद (माघ सक्रांति से पहली रात) यह पर्व मनाया जाता है । पूस माह की कड़कड़ाती सर्दी से बचने के लिए आज भी सहायक सिद्ध होती है यही व्यवहारिक आवश्यकता लोहड़ी को मौसमी पर्व का स्थान देती है ।
लोहड़ी के बाद से ही दिन बड़े होने लगते हैं यानी माघ मास शुरू हो जाता है यह त्योहार पूरे विश्व में मनाया जाता है हालांकि पंजाब हरियाणा और दिल्ली में यह त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है लोहड़ी पर घर-घर जाकर दुल्ला भट्टी के और अन्य तरह के गीत गाने की परंपरा है लेकिन आजकल ऐसा कम ही होता है बच्चे घर-घर लोहड़ी लेने जाते हैं उन्हें खाली हाथ नहीं लौटाया जाता है इसलिए उन्हें गुड मूंगफली ,तिल ,गजक ,रेवड़ी दी जाती है दिन भर घर घर से लकड़ियां लेकर इकट्ठी की जाती है आजकल लकड़ी की जगह पैसे भी दिए जाने लगे हैं जिन से लकड़ियां खरीद कर लाई जाती है और शाम को चौराहे या घरों के आसपास खुली जगह पर जलाई जाती है उस अग्नि में तिल गुड़ और मक्का को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है आग जलाकर लोहड़ी को सभी में वितरित किया जाता है नृत्य संगीत का दौर भी चलता है पुरुष भांगड़ा तो महिलाएं गिद्दा नृत्य करती हैं।