सैन्य जीवन का आगाज़ और बिगुल की आवाज़ शौर्य स्मारक में दिखाई सैन्य फिल्म ‘कॉल ऑफ बिगुल' एक सामान्य युवा नागरिक के सैन्य जीवन की शुरूआत सैन्य प्रषिक्षण से होती है। उसके जीवन का निर्णायक मोड़ भी यहीं से शुरू होता है। यहीं वो समय होता है जब असैन्य क्षेत्र से सैन्य क्षेत्र का सफ़र शुरू होता है। सेना के लिये बहादुर जवानों का चयन होते ही प्रषिक्षण की कठिन प्रक्रिया के दौर से गुजरना होता है। खून-पसीना एक करके जी-तोड़ मैहनत के बाद जब इन नये सैनिकों के चेहरों पर पराक्रम की चमक खिलती हैं तो प्रषिक्षण सारी थकान, भुलाकर ये अपने फर्ज और मातृभूमि की सुरक्षा के लिये खुद को समर्पित कर देते है। इस पूरे दौर में जो आवाज़ इनके कानों से होकर दिल-ओ-दिमाग में बस चुकी होती है। वह है सैन्य बिगुल की ऊर्जावान आवाज़। दिन की आरंभ होता हैं बिगुल की इसी ध्वनि और नये सैनिकों की प्रषिक्षण प्रक्रिया को फिल्म्स डिवीजन ऑफ इंडिया ने प्रस्तुत किया सैन्य फिल्म ‘कॉल ऑफ बिगुल‘ ;ब्ंसस व्ि ठनहसमद्ध के जरिये। मज़ाहिर रहीम निर्देषित तथा एन.एस. थापा निर्मित इस फिल्म को शौर्य स्मारक के मुक्ताकाष मंच पर आज़ादी का अमृत महोत्सव के तहत रविवार शाम दिखाया गया।