क्रांति कुमार भारतीय का जन्म कलकत्ता में सन् 1894 को हुआ था। उनके पिता का नाम श्री देवकीनंदन था। क्रांति कुमार भारतीय उनका स्वयं का दिया नाम था। वे देश की सेवा करने वाले अध्यात्मिक नेता थे। वे आजीवन ब्रह्मचर्य का जीवन व्यतीत करते हुये देष की सेवा करते रहे। उन्होंने अपना कोई आवास नहीं बनाया था। उनका कर्म क्षेत्र उत्तरप्रदेश और छत्तीसगढ़ रहा है। वे सन् 1930 के लगभग बिलासपुर आये थे। कुछ समय पश्चात् वे रायपुर आ गये और यहां पर अपने आत्मीय जनों के निवासों में उनके साथ रहे।
सन् 1919 में दिल्ली में रोलेक्ट एक्ट के खिलाफ संघर्ष करने के बाद वे राजस्थान, पंजाब आदि स्थानों में घूमते हुये उत्तर प्रदेश के गुड़गांव पंहुचे यहीं उन्हें एक वर्ष का कारावास हुआ। उनका संबंध काकोरी केस से भी था। उसके पश्चात् सन् 1920 में फिरोजपुर डकैती केस में गिरफ्तार होकर 4 वर्ष जेल में बिताये। सन् 1930 में काशी पोस्ट ऑफिस डकैती केस से फरार होकर बिलासपुर पंहुच गए और सविनय अवज्ञा आंदोलन में हिस्सा लिया। 18 अगस्त सन् 1930 को उनके नेतृत्व में टाऊन हाल में तिरंगा फहराया एवं 4 अगस्त सन् 1930 को उन्होंने स्वयं पुलिस के हाथों से तिरंगा छीन कर गर्वमेंट हाईस्कूल में फहरा दिया। इसके कारण उन्हें 6 माह की जेल की सजा हुई। द्वितीय सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय क्रांति कुमार जी रायपुर आ गये। यतियतन लाल जी के सम्पर्क के कारण महासमुन्द गये थे वहां पचेड़ा में 12 जनवरी को विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार एवं मद्यनिषेध आंदोलन के तहत् पचेड़ा में गिरफ्तार कर लिये गये। वहां से उन्हें रायपुर केद्रीय जेल भेजा गया। यहां उन पर अत्यधिक अत्याचार किया गया। उन्हें 30 बेतों की सजा हुई। इस बात की जानकारी मिलने पर रायपुर के युवा उत्तेजित हो गये और इस घटना का बदला लेने के लिए अपने खून से लिख कर पोस्टर षहर में कई स्थानों में चिपकाये गये थे। उन्हें 6 माह की सजा हुई थी। पुलिस की मार से उनके कान के परदे फट गये थे इससे उनमें बहरापन आ गया था। अपने कार्यो और निर्भीकता से भारतीय जी छत्तीसगढ़ के युवाओं के लिये वे प्रेरणा स्त्रोत बन गये थे। सन् 1933 में गोंदिया में एवं सन् 1935 में मुल्ताई में रामायण का पाठ करने एवं उसकी व्याख्या के द्वारा लोगों को भड़काने के आरोप में आपको 1-1 वर्ष की कारावास की सजा हुई थी। सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के पूर्व परसराम सोनी, सूर बंधुओं आदि युवकों के साथ मिलकर क्रांति कुमार जी ने छत्तीसगढ़ में बम एवं बंदूक के माध्यम से एक बड़ी क्रांति की योजना बनाई थी, किंतु एक साथी के मुखबिर बनने के कारण जुलाई सन् 1942 की सभी प्रमुख लोग गिरफ्तार कर लिये गये। इसे रायपुर षंड़यंत्र केस का नाम दिया गया था। इस घटना में क्रांति कुमार को 2 वर्ष की कठोर कारावास की सजा हुई थी। उनका देहावसान 2 अगस्त सन् 1971 में हुआ था।
References:
- नोट आनॅ सिविल डिसओबिडियेन्ट मूवमेंट इन द सेंट्रल प्रोविन्सेज एण्ड बरार 31 दिसम्बर सन् 1930
- होम पालिटिकल फाइल 18/4/1943 पाक्षिक रिपोर्ट अप्रैल 1943 का द्वितीय पक्ष
- श्री परसराम सोनी का संस्मरण
- मध्यप्रदेष स्वतंत्रता संग्राम सैनिक खण्ड-3, भाषा संचालनालय, संस्कृति विभाग, मध्यप्रदेष, भोपाल, 1984