गेंदमल का जन्म 15 जुलाई सन् 1902 में बालोद के निकट नेवरीकला गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री हंसराज जैन था। उन्होंने प्राथमिक तक शिक्षा ग्रहण की थी। असहयोग आंदोलन के वातावरण ने गेंदलाल जी के अंदर राष्ट्रप्रेम जागृत कर दिया था। वे दुर्ग में होने वाली सभाओं एवं रैलियों में भाग लेने लगे थे, साथ ही वे खादी का प्रचार करते थे और खादी को गांव-गांव तक पहुंचाने के लिए खादी वस्त्रों का गट्ठा लादकर गांवों में सस्ते में बेचने लगे। इससे इनकी गतिविधियां षासन के नजर में आ गयी और उन्हें कलेक्टर द्वारा सन् 1928 में आदेश दिया गया कि आंदोलनकारियों के साथ छोड़ दे किंतु गेंदलाल जी ने अपना कार्य यथावत् जारी रखा। वे खादी ब्रिकी करने के साथ ही शराब आदि व्यसनों का त्याग करने एवं लोगों को राष्टीªय आंदोलनों से जोड़ने का प्रयत्न करते रहे।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के द्वितीय चरण में गेंदलाल जी राष्ट्रीय सप्ताह मनाते हुये 9 अगस्त सन् 1932 को ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार आंदोलन का नेतृत्व करते हुए गिरफ्तार कर लिये गये। उन्हें 9 माह का कारावास हुआ। सन् 1933 में गांधी जी के छत्तीसगढ़ आगमन से उनके साथ वे अस्पृश्यता विरोधी क्रार्यक्रमों में सम्मिलित होकर हरिजन बस्ती में घूमने लगे, उनके हाथों से पानी एवं खाना लेने लगे।
वे महात्मा गांधी के दर्षन के लिये वर्धा आश्रम पैदल गये तथा वहीं से पैदल त्रिपुरी के कांग्रेस अधिवेशन में भी पहुंचे। पूरे 8 माह एक भिक्षु की भांति पदयात्रा करते रहे। वापस लौटकर गुंडरदेही एवं दुर्ग में सभा एवं जुलूस करने लगे थे। व्यक्तिगत सत्याग्रह के समय उनका क्षेत्र ग्रामीण था अतः पुलिस उन तक पहुंच नहीं पायी थी। किंतु भारत छोड़ो आंदोलन में वे पुनः गिरफ्तार कर लिये गये और 22 अक्टूबर सन् 1942 से 29 जून सन् 1943 तक कारावास में रहें। उनका देहावसान जनवरी सन् 1991 को हो गया।
References:
- मध्यप्रदेश स्वतंत्रता संग्राम सैनिक खण्ड-3, भाषा संचालनालय, संस्कृति विभाग, मध्यप्रदेष, भोपाल, 1984
- दुर्ग जिला गजेटियर पृ.623
- दैनिक देषबंधु 1992