अंजोरदास कोसले का जन्म मुंगेली के देवरी ग्राम में सन् 1884 में हुआ था। उनके पिता का नाम देवदास एवं माता का अमृता बाई था। प्राथमिक कक्षा तक षिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी क्योंकि उनके पिता का देहावसान होने के पष्चात् उनकी मालगुजारी से उनका हक छीना जा रहा था। इन कठिन परिस्थितिायों और कम उम्र के बाद भी उन्होंने अपना धैर्य नहीं खोया बल्कि अपने कार्यो से समाज एवं ष्षासन में सम्मानजनक स्थान प्राप्त कर लिया।
अंजोर दास जी ने ना केवल अपनी मालगुजारी की रक्षा की बल्कि सन् 1906 के लगभग पंथ के धार्मिक स्थलों की रक्षा के लिये धन प्रदान कर उन्हें बचा लिया। अपने पंथ के गुरू अजबदास की भी उन्होंने सहायता की थी अतः उन्हें राजमहंत की उपाधि प्राप्त हुई। वे एक संवेदनषील नेता थे। सन् 1899-1900 के भयंकर अकाल के समय भूखी जनता के लिये भोजन कपड़ा आदि की व्यवस्था कर उन्होंने मानवता का परिचय दिया था। उन्होंने सन् 1914 से ही महंत नैनदास के सहयोगी के रूप में गौ रक्षा का कार्य भी प्रारंभ कर दिया था और कसाई खानों का विरोध किया था। सन् 1917 में पं. सुंदरलाल षर्मा का सहयोग कर मुंगेली में सर्वजाति सम्मेलन को सफल बनाते हुये, सतनामियों को यज्ञोपवीत कराने में योगदान दिया। सन् 1918 में वे कांग्रेस के सक्रिय सदस्य बन गये थे। पं. सुंदरलाल षर्मा द्वारा स्थापित सतनामी आश्रम को समय समय पर अनाज, वस्त्र एवं धन से सहायता करते थे। मुंगेली के अग्रणी कांग्रसी नेता गजाधर साव एवं पं. सुंदरलाल षर्मा की प्रेरणा से उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में प्रवेष किया। झंडा सत्याग्रह में वे अनेक साथिओं के साथ सम्मिलित हुये थे। सन् 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय वे अस्वस्थ हो गये थे किंतु उन्होंने अपने अनुयायियों को आंदोलन में सक्रिय भाग लेने की प्रेरणा दी जिसके कारण मुंगेली में बड़ी संख्या में सतनामीयों ने बहिष्कार धरना प्रदर्षन जैसे कार्यक्रमों में भाग लिया तथा 32 सतनामी आंदोलनकारी गिरफ्तार भी किये गये। उनके सहयोग से मालगुजार रतिराम ने उनके ग्राम देवरी में चरखा संघ की स्थापना की जहां पर लोगों को चरखा चलाना एवं खादी के वस्त्र बुनने का प्रषिक्षण दिया जाता था। इस प्रकार अपने समाज और राष्ट्र के लिए सतत् प्रयासषील राय अंजोर दास कोसले अस्पृष्यता विरोधी अभियान में स्वतंत्रता के बाद भी जुड़े रहे। 2 सितम्बर सन् 1957 को उनका निधन हो गया।